ये क्षेत्र के आधार पर तय होता है। प्रत्येक नस्ल की कुछ अच्छाईयाँ हैं जिसे व्यवसायिक दृष्टि से दोहन किया जा सकता है। द गोट ट्रस्ट का अनुभव बताता है कि शुरूआत स्थानीय नस्ल की उत्तम बकरा-बकरी से करना चाहिए ताकि शुरूआती समस्या कम हो। स्थानीय उत्तम बकरा-बकरी से शुरूआत करें। प्रत्येक क्षेत्र में उत्तम, साधारण तथा खराब गुणवत्ता की बकरी उसी नस्ल के अंदर होती है। अतः ध्यान उत्त पैदावार देने वाली बकरी के चयन पर होनी चाहिए। शुरू में अनुभव कम होने से बाहर की बकरी लाने पर निम्न समस्या आने की संभावना है-
(क) अधिकतम संभावना है कि दूसरे क्षेत्र से कम उत्पादकता वाली बकरी ही मिल पाए क्योंकि दूसरे क्षेत्र से कम गुणवत्ता वाली बकरी ही हाट/बाजार मे बिकने आती है। बहुत अच्छी बकरी के लिए घर-घर जाकर बकरी खरीदना संभव नहीं हो पाता।
(ख) बाहर से बकरी लाने पर परिवहन का तनावव, लम्बे समय तक भूखा रहना, कमजोर बकरी मिलना, बीमार बकरी (लक्षण बाद में दीखते हैं) आम समस्या होती है। ऐसे में बकरियों में संक्रमण, अतिसार, पेचिस, दस्त जैसी बीमारी की अधिक संभावना रहती है। शुरू में प्रबंधन भी एकदम मजबूत नहीं हो पाता। अतः मृत्यु दर बढ़ जाती है। एकबार स्वयं का प्रबंधन अनुभव होने के बाद फार्म के उद्देश्य जैसे बकरीद के लिए बकरा, दूध, मेमना पालन, मांस के हिसाब से नस्ल चयन आसान होगा। बकरीद के लिए जहां ओसमानाबादी, सिरोही, तोतापरी, जमनापारी, बुंदेलखंडी जैसी बड़ी आकार वाली नस्ल सही दाम देती हैं, वही दूध के लिए बीटल, सिरौती, जखराना, नस्ल ज्यादा फायदेमंद है। स्थानीय मांस के लिए बिक्री के नजरिए से ब्लैक बंगाल, बरबरी जैसी छोटी लेकिन ज्यादा मेमने देने वाली तथा साल में दो बार मेमने देने वाली बकरी अच्छी रहती है। अतः निर्णय बाजार तथा फार्म उद्देश्य पर निर्भर करता है।